घर की तामीर चाहे जैसी हो – निदा फाज़ली

जब किसी से कोई ग़िला रखना
सामने अपने आईनां रखना
यूँ उजालों से वास्ता रखना
शमा के पास ही हवा रखना
घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना
मस्जिदें हैं नमाज़ीयों के लिए
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना
मिलना जुलना जहां जरूरी हो
मिलने जुलने का होंसला रखना ! !image

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Disshaart

पेशे से एक ड्राईवर व चित्रकार भी हूँ। किताबें पढने का शौकीन हूँ.थोडा बहुत लिख भी लेता हूँ.अच्छी लिखतों की कद्र करता हूँ,कोशिश ये रहती है कि मैं भी कुछ अच्छा लिख सकूँ.

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